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मंगलवार, 22 अक्तूबर 2013

करवाचौथ ..करवे बिन











(माँ की नज़र से पूज्य बाबू जी को समर्पित )

जानती हूँ
तुम अब नहीं हो
न ही रची है
मेरे हाथों में
तेरे नाम की मेहंदी
सुर्ख लाल चूड़ियों की खनक
जुदा है अब मेरे वजूद से
चाँद सा टीका
अब दूर छिटक गया है
झिलमिल सितारों वाली चुनरी
रंगरेज़ ने कर दी है
स्याह काली
नहीं सजाऊँगी मैं अब
करवे की थाल ।

पर ..सुनो !
रात, जब
चाँद निकलेगा ना
तुम उसकी खिड़की से झांकना
मैं मन के दर्पण में
देख लूंगी तुम्हारा अक्स
हाँ ,नहीं कर पाऊँगी
मंगल कामना
तुम्हारी लम्बी उम्र की
कि अब तुम देह बंधन से परे
जा उस लोक में
कर रहे मेरा इंतजार
और इस देह बंधन में बंधी
मैं कर रही तुमको नमन !!



सु..मन
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