@सर्वाधिकार सुरक्षित

सर्वाधिकार सुरक्षित @इस ब्लॉग पर प्रकाशित हर रचना के अधिकार लेखक के पास सुरक्षित हैं |

शनिवार, 23 नवंबर 2013

जिजीविषा











गूंजने लगे हैं
फिर वही सन्नाटे
जिन्हें छोड़ आए थे
दूर कहीं ... बहुत दूर
तकने लगी हैं
फिर वही राहें
जो छूट गई थी
पीछे ... बहुत पीछे |

ख़याल मन में नहीं बसते अब
बस इसे छूकर निकल जाते हैं
बावरा मन समझ गया है
ख़याल मेहमान है
आये, आकर चले गए
हकीकत साथी है
चलेगी दूर तलक |

ये दो नयन भी नहीं छलकते अब
सेहरा बन गए हैं शायद
जिनमें उग आए हैं
कुछ यादों के कैक्टस
जिनके काँटों की चुभन से
कभी निकल आते हैं
अश्क के कतरे
जज़्ब हों जाते हैं
लबों तक आते आते |

घर में भी इंसान नहीं रहते अब
बस घूमती हैं चलती फिरती लाशें
नहीं पकती चूल्हे पर रोटी
खाली बर्तन को सेंकते
लकड़ी के अधजले टुकड़े
बिखेरते रहते हैं धुआं
तर कर देते हैं 
ये शुष्क आँखें |

कुछ इस तरह
जिंदगी को मिल जाती है
टुकड़ों टुकड़ों में
जीने के लिए
जिजीविषा !!






 सु..मन 

रविवार, 3 नवंबर 2013

जल रहे हैं दीपक













जल रहे हैं दीपक 

सबके आँगन 
चल रहे हैं 
पटाखे फुलझडियाँ 
सज रहे हैं द्वार 
लक्ष्मी के स्वागत में ...

ये देखते हुए 

जलाया है किसी ने 
पिछले बरस खरीदा 
अधटूटा सा दीपक 
घर के द्वार पर 
तुम्हारे लिए .....

रखी है उसने 

अपने हिस्से की 
एक पूरी कुछ हलवा 
मिला है जो उसको 
आज सुबह 
एक मंदिर के बाहर 
भीख के कटोरे में .....

सोच में हूँ 

क्या आओगी तुम 
उस द्वार 
या जलेगा वो दीपक 
फिर तन्हा 
यूँ ही अगले बरस...... !!



सु..मन 

(हे माँ ! सभी की झोली खुशियों से भर दो ...सभी को दीपावली की मंगलकामनाएं ...) 

www.hamarivani.com
CG Blog www.blogvarta.com blogavli
CG Blog iBlogger