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बुधवार, 28 जुलाई 2010

तुम आए हो................

कुछ दिनों से मेघ कुछ ज्यादा ही प्रसन्न दिखाई दे रहे हैं ........बस निर्झर बहते ही जा रहे हैं........... साथ में मतवाली धुन्ध जब अलमस्त हिरनी सी चाल में चलती है तो मन मुग्ध हो जाता है । रोज सुबह जब भी ऑफिस के लिये निकलती हूँ बारिश की हल्की हल्की बून्दें मन में स्पन्दन सा करने लगती है पहाड़ों पर मचलते फाहों के संग झूमने को मन करता है और मन गाने लगता है कुछ इस तरह............
घर की छत से कुछ यूं दिखते हैं नज़ारे
रास्ता कुछ यूं कटता है


तुम आए हो................

तुम आए हो मेरे सामने इक प्रीत की तरह
आओ गुनगुना लूं तुम्हें इक गीत की तरह

छा रही है सब तरफ आलम-ए-मदहोशी
कूचा-2 महकने लगा है पत्तों में हो रही सरगोशी


तुम आए हो मेरे सामने इक पैगाम की तरह
आओ पी लूं तुम्हें इक जाम की तरह

फिज़ाओं में लरजने लगा है इक तराना
गाने लगे हैं भंवरे कलियों ने सीखा है इतराना

तुम आए हो मेरे सामने जुस्तजू की तरह
आओ बिखेर दूं तुम्हें इक खुशबू की तरह

छा गये हो इन पर्वतों पे तुम यूं घनेरे
दरिया तूफानी कह रहा तुम हो मीत मेरे

तुम आए हो मेरे सामने इकरार की तरह
आओ अपना लूं तुम्हें इक प्यार की तरह
                          आओ अपना लूं तुम्हें........................!!
                                                                 
                                                                       सुमन ‘मीत’
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